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माझी कविता
सोमवार, 7 जनवरी 2008
प्राजक्ता
तू यायच्या आधीच तुझं नाव ठरलेलं होतं....
पहाटेच्या दंवात प्राजक्त फुलावा
असं तुझं बाळरूप पाहिलं,
आणि आपला निर्णय किती अचूक होता
असं आयुष्यभर वाटत राहिलं....
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