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माझी कविता
रविवार, 20 अप्रैल 2008
पद्मजा
तुमच्या पापणीतून ओघळलेला
अनावर अश्रू
तुमच्या सुंदर मनाचं प्रतिक होता,
आवरून ठेवलेल्या भावनांसाठी आज
पापणीचा काठ मात्र मोकळा होता...
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